Madhu varma

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लेखनी कविता - पुलिस-महिमा - काका हाथरसी

पुलिस-महिमा / काका हाथरसी 


पड़ा - पड़ा क्या कर रहा , रे मूरख नादान
 दर्पण रख कर सामने , निज स्वरूप पहचान
 निज स्वरूप पह्चान , नुमाइश मेले वाले
 झुक - झुक करें सलाम , खोमचे - ठेले वाले
 कहँ ‘ काका ' कवि , सब्ज़ी - मेवा और इमरती
 चरना चाहे मुफ़्त , पुलिस में हो जा भरती

 कोतवाल बन जाये तो , हो जाये कल्यान
 मानव की तो क्या चले , डर जाये भगवान
 डर जाये भगवान , बनाओ मूँछे ऐसीं
 इँठी हुईं , जनरल अयूब रखते हैं जैसीं
 कहँ ‘ काका ', जिस समय करोगे धारण वर्दी
 ख़ुद आ जाये ऐंठ - अकड़ - सख़्ती - बेदर्दी

 शान - मान - व्यक्तित्व का करना चाहो विकास
 गाली देने का करो , नित नियमित अभ्यास
 नित नियमित अभ्यास , कंठ को कड़क बनाओ
 बेगुनाह को चोर , चोर को शाह बताओ
‘ काका ', सीखो रंग - ढंग पीने - खाने के
‘ रिश्वत लेना पाप ' लिखा बाहर थाने के

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